The 7 Habits Of Highly Effective People Book Summary

The 7 Habits of Highly Effective People Book Summary Hindi

लेखक Stephen R. Covey द्वारा लिखित The 7 Habits of Highly Effective People बुक, उन सात आदतों के बारे में है, जो सफल लोग उपयोग करते हैं। यह बुक आदतों के बारे में इसलिए भी बात करती है कि हम अधिकतर अपनी आदतों के गुलाम होते है। एक नार्मल अवस्था में कोई भी अपनी आदतों को छोड़ सकता है। अगर परिस्थितियाँ विपरीत हो तब हम केवल अपनी आदतों के अनुसार ही व्यवहार करेंगे।

लेखक के अनुसार, हर व्यक्ति इन्हीं मानसिक आदतों के उपयोग से अपनी सफलता की ऊंचाइयों को बनाए रखते हुए आगे बढ़ सकता है। और यह बात याद रखे "आदतें है दोहराव के द्वारा ही विकसित की जा सकती है।" तो बुक समरी कुछ इस प्रकार है;

वे सक्रिय होते है।

यह मेरी सोच है कि हम जीवन दो प्रकार से जीते है। पहला सक्रिय होकर और दूसरा निष्क्रिय होकर। सक्रिय जीवन में अधिकांश फैसले हम जागरूक होकर लेते है और उन फैसलों की जिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार रहते है।

निष्क्रिय जीवन में, हम अधिकांश फैसले परिस्थितियों के भरोसे छोड़ देते है। जिससे वैसे परिणाम मिलते है जिनकी हम उम्मीद भी नहीं करते है, और उनकी जिम्मेदारी भी नहीं उठा सकते।

लेखक के अनुसार, प्रभावशाली लोग सक्रिय जीवन जीने में विश्वास रखते है। जिसके कारण उनमें कुछ अलग ही मानसिकता विकसित हो जाती है। जैसे अपने काम की जिम्मेदारी लेना, अपने चुनाव खुद करना, विपरीत परिस्थितियों के बाद भी कार्य में ठीके रहना आदि।

यह मेरी सोच है कि हम सभी सक्रिय होते है। फर्क बस इस चीज का होता कि हम सक्रिय चुनाव को लंबे समय तक बनाए नहीं रख पाते है। इसके लिए हमें अपनी आदतों को हमेशा कल से आज बेहतर करने का प्रयास करना है।

वे अंत को ध्यान में रखकर शुरुआत करते है।

यह मेरा विचार है कि हर कार्य का अपनी सोच और परिस्थितियों के अनुसार कुछ अंत होता है। हम अपने अनुसार अपने कार्य के अंत को देख सकते है और उसे सहन करने की हिम्मत जुटा सकते है।

सफल मानसिकता वाला व्यक्ति, इससे एक और कदम आगे की सोचता है। वह अपनी परिस्थितियों के अनुसार होने वाले अंत को सहन करने के लिए भी खुद को विकसित करता है, चाहे वह उस अंत का अनुमान नहीं लगा सकता।

लेखक के अनुसार, अंत को ध्यान में रखकर शुरुआत करने का अर्थ है "अपनी मंजिल के बारे में स्पष्ट समझ होना"। इससे हमें यह पता चलता है कि हम कहां जाना चाहते है और अभी कहां है।

सफल मानसिकता वाले व्यक्ति, अपने सफलता के लिए एक रोड मैप बनाते है। ताकि समय आने पर वे अपनी मंजिल की दिशा देख सकें। इससे उन्हें पता चलता है कि वे कितनी दूर पहुंचे है और उन्हें कितनी दूर ओर जाना है। उन्हें वहां पहुंचने में कौनसी आदतें मदद करेंगी और अभी उनके पास कौनसी आदतें है।

वे महत्वपूर्ण काम पहले करते है।

सफल व्यक्ति, महत्वपूर्ण कार्यों को सबसे पहले करते है। वे उन्हें कम महत्वपूर्ण कार्यों की दया पर कभी नहीं छोड़ते।

लेखक के अनुसार, हम अपने कार्यों को चार भागों में बांटकर देख सकते है कि कौनसा कार्य महत्वपूर्ण है और कौनसा नहीं ? दूसरा कौनसा आवश्यक है और कौनसा नहीं? तो शुरू करते है बांटने की प्रक्रिया;

  1. आवश्यक और महत्वपूर्ण। इनमें ऐसे कार्य आते है जिन्हें तुरंत ध्यान देने की आवश्यकता है, जैसे अपना लोन भरना, भोजन लेना आदि।
  2. आवश्यक नहीं है लेकिन महत्वपूर्ण है। इसमें हम अपने उद्देश्यों और लक्ष्यों पर कार्य करते है। जैसे बुक पढ़ना, नई चीजें सीखना, आदतें बनाना आदि।
  3. आवश्यक लेकिन महत्वपूर्ण नहीं। यहां हम भ्रमित कार्यों को करते है। जो हमारी सोच के अनुसार कुछ और होते है और असल में कुछ और। इन कार्यों के उदाहरण हम सभी के लिए अलग- अलग हो सकते है।
  4. आवश्यक नहीं और महत्वपूर्ण भी नहीं। यहां हमारा समय नष्ट होता है। जो लोग अपने काम को छोड़कर मजे ढूंढते है, उनके लिए यहां बेहतर कार्य मिल सकते है।

हमनें अपने कार्यों को बांटना सीख लिया है। अब हमें यह देखना है कि हमारे लक्ष्यों के अनुसार किस प्रकार के कार्य हमारे लिए बेहतर होंगे और क्या हम उनकी गलतियों से सीख सकते है।

वे हमेशा जीत-जीत पर विचार करते है।

हम सभी अपने कार्य के परिणाम देखने को उत्सुक होते है। हमें सफलता की उत्सुकता में कार्य के परिणामों से निकलने वाली भावनाओं को नहीं भूलना चाहिए। क्योंकि यह भावनाएं अपने लिए और अपने विपक्षी के लिए बहुत मायने रखती है।

लंबे समय तक एक साथ कार्य करने के लिए, यह जरुरी है कि परिणाम की मानसिकता दोनों के लिए बेहतर हो।

कार्य के परिणामों से जो भावनाएं निकलती है वे कुछ इस प्रकार है;

  1. जीत-हार। यह मानसिकता बताती है कि "मैं जीतूंगा तो तुम हारोगे"। यह मानसिकता अपनी बात मनवाने के लिए शक्ति और पद का उपयोग करती हैं।
  2. हार-जीत। यह मानसिकता कहती है कि "मैं हारा तुम जीते"। यह मानसिकता दूसरों को खुश करने में तेज होती है लेकिन अपनी भावनाओं और विश्वासों को प्रकट करने से डरती हैं।
  3. हार-हार। जब दो जीतने या हारने वाली मानसिकता एक साथ आती है तो नतीजा हार-हार ही होता है। क्योंकि दोनों प्रतिभागी बन जाती है और एक दूसरे से बराबरी करने पर अधिक ध्यान देती है।
  4. जीत। यह मानसिकता केवल अपनी जीत के बारे में सोचती है। साथ ही इसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि सामने वाला हारेगा या जीतेगा।
  5. जीत-जीत या कोई सौदा नहीं। इस प्रकार की मानसिकता, दोनों पक्षों की जीत के बारे में सोचती है। अगर वहीं एक की जीत और दूसरे की हार होती है, तो वे उस सौदे को छोड़ देती हैं।

हमने, कार्य के परिणामों की भावनाओं के बारे में जान लिया है। अब फैसला हमारा है कि हम किस प्रकार की भावना को अपनाने पर जोर देते है ताकि हमें बेहतर परिणाम देखने को मिल सकें।

वे पहले समझते है, फिर समझाते है।

सुनने और उन्हें समझने से हम दुश्मनों को भी दोस्त बना सकते है।

यह हमारी आदत कहलो या कंडीशनिंग कि हम जल्दबाजी में काम करते हैं। अच्छी सलाह देकर चीजों को ठीक कर देते हैं। पर हम यह भूल जाते है कि सामने वाला किस मानसिकता के अनुसार हमसे सवाल पूछ रहा है या मदद मांग रहा हैं।

लेखक के अनुसार, हम अपने जीवन साथी, अपने बच्चों, अपने पड़ोसियों, अपने बॉस, अपने सहकर्मीयों और अपने दोस्तों को प्रभावित करना चाहते हैं। तो हमें सबसे पहले उन्हें समझना होगा।

हम ऐसा किसी तकनीक की मदद से नहीं कर सकते। क्योंकि अगर सामने वाले को लगता है कि हम कोई तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं तो उसे छल-कपट का एहसास होगा।

उसके मन में अनेक प्रकार के प्रश्न उठेंगे जैसे हम ऐसा क्यों कर रहे हैं? हमारे इरादे क्या है? आदि। जिससे वह हमारे सामने खुलकर बात करने में असुरक्षित महसूस करेगा।

पहले समझने की कोशिश करो कि सामने वाला क्या कहने की कोशिश कर रहा है? क्योंकि ज्यादातर लोग समझने के इरादे से नहीं सुनते, वे जवाब देने के इरादे से सुनते हैं। वे या तो बोल रहे होते हैं, या बोलने की तैयारी कर रहे होते हैं।

वे चीजों में तालमेल बैठाने का प्रयास करते है।

हर इंसान के अंदर इतने रहस्य होते है कि कोई भी पूरी तरह अपने रहस्य जान नहीं सकता है।

हम कभी-भी परफेक्ट नहीं हो सकते है इसलिए हमें अपनी आदतों विचारों, परिस्थितियों, कर्मचारियों आदि में तालमेल बैठाना सीखना हैं। तालमेल एक अलग प्रकार की शक्ति को एकत्र करता है जो हमारी कार्य करने की क्षमता को बढ़ा देता है।

तालमेल का सिद्धांत, हमारे ध्यान को पोषित करता है। साथ ही, यह हमारे भीतर की सबसे बड़ी शक्ति को प्रेरित, एकीकृत और बहार निकलने में भी मदद करता है।

प्रकृति में हर जगह तालमेल है। जैसे अगर हम दो पौधे एक साथ लगाते हैं तो दोनों पौधों की जड़े आपस में मिल जाती है। जिससे दोनों पौधे अलग-अलग होने की तुलना में बेहतर तरीके से विकसित होते हैं।

दूसरा उदाहरण अगर हम लकड़ी के दो टुकड़ों को एक साथ रखते हैं तो वे अपने वजन से कहीं ज्यादा वजन उठाएंगे। यहां नियम एक से दो नहीं बल्कि एक से तीन या उससे ज्यादा का चलता है।

वे अपने जीवन के हथियारों को तेज करते है।

जीवन की परिस्थितियों का पेड़, कम धार वाले हथियारों से नहीं काटा जा सकता है। अगर हम अपने हथियारों को तेज नहीं करेंगे, तो हमें अधिक प्रयासों से बहुत कम मिलेगा और बहुत अधिक समय भी देना होगा।

लेखक अपने हथियारों को तेज करने के लिए चार आयामों पर काम करने की सलाह देते है, जो इस प्रकार है;

  1. भौतिक आयाम। इसमें भौतिक शरीर पर ध्यान दिया जाता है। जिसमें सही प्रकार से भोजन लेना, पर्याप्त विश्राम करना और प्रतिदिन व्यायाम करना शामिल है।
  2. आध्यात्मिक आयाम। इसमें हम जीवन के बहुत ही निजी और अत्यंत महत्वपूर्ण क्षेत्र पर ध्यान देते है। यहां हम मानवता के शाश्वत सत्य से जुड़ने की ओर कदम बढ़ाते हैं।
  3. मानसिक आयाम। यहां हम अपनी मानसिक पहलुओं के बारे में जानते है। जिसमें अपने बोलने के तरीके, भावनाओं और विचारों से उत्पन्न होने वाले परिणामों पर सवाल उठाते है।
  4. सामाजिक/भावनात्मक आयाम। यहां समाजिक जिम्मेदारी और जुड़ाव पर कार्य करते है। जिसमें हमारे दोस्त, रिश्तेदार, पड़ोसियों और संसार के बीच हमारे भावनात्मक पहलू पर काम किया जाता है।

यह चारों आयाम हमारे जीवन में काम करते है और हम चारों पर कभी-न-कभी काम भी करते है। जरूरत है तो बस इसे लगातार करते रहने की।

निष्कर्ष

इसी के साथ "The 7 Habits of Highly Effective People" बुक समरी समाप्त होती है अब बारी ज्ञान को समेटने की।

इस बुक समरी में हमने खुद को जागरूक बनने के बारे में बात की, ताकि हम आगे आने वाली बातों और परिस्थितियों को समझ सकें। दूसरा, हमने अपने कार्य का अंत पहले जानने के बारे में पढ़ा, जो परिणामों से होने वाली निराशा से दूर ले जाता है।

तीसरा, काम शुरू करने से पहले काम की महत्व के बारे में जाना ताकि हम अनावश्यक कार्यों में ही न अटके रहे। चौथा, अगर हम किसी के साथ लंबे समय तक कार्य करना चाहते है तो कार्य के परिणाम से ज्यादा कार्य की भावनाएं मायने रखती है।

अंतिम दो हैडिंग में, हमने दूसरों को समझने और अपनी चीजों में तालमेल बैठाने के बारे में जाना। जितना जरुरी दूसरों को सलाह देना है उससे दो गुना जरुरी है उन्हें समझना। क्योंकि हमारे जवाब हमारी समझ पर ही निर्भर करते है।

लेखक के अनुसार, हर बुक का एक ही लक्ष्य होता है। हमें अपनी आदतों, विचारों और व्यवहारों पर प्रश्न खड़ा करना, ताकि हम जान सके कि हम अपने लक्ष्य की दिशा में जा रहे या नहीं। यह बुक भी यही काम करती है। इस बुक में इसी तरह 7 नये विचार दिए है जिन्हें हम खुद की बेहतरी के लिए उपयोग कर सकते है।


END

और नयापुराने