Super Trader Book Summary

ट्रेडिंग की दुनिया में सफल होना केवल सही ट्रेड लेने या टेक्निकल एनालिसिस को समझने तक सीमित नहीं है। असल में, यह हमारी मानसिकता की मजबूती, अनुशासन, और रणनीतिक सोच पर अधिक निर्भर करता है।

लेखक Van K. Tharp द्वारा लिखित Super Trader एक ऐसी किताब है जो हमें सिर्फ ट्रेडिंग सिखाने के बजाय, एक प्रोफेशनल ट्रेडर की मानसिकता विकसित करने में भी मदद करती है। यह बुक बताती हैं कि ट्रेडिंग करना आसान है, पर उससे निरंतर प्रॉफिट बनाना, एक अलग ही चुनौती है। यह बुक हमें अपने ट्रेडिंग डर और लालच को मैनेज करते हुए लगातार प्रॉफिट बनाने की ओर ले जाती है।

Super Trader Book Summary

ट्रेडिंग में खुद पर काम करना

खुद पर काम करने का मतलब है ट्रेडिंग में मानसिक मजबूती, अनुशासन और आत्म-जिम्मेदारी को विकसित करना। इससे हम बेहतर निर्णय ले सकते हैं और ट्रेडिंग में निरंतर सुधार कर सकते हैं।

अगर हम खुद को विकसित नहीं करेंगे, तो:

  1. हम छोटी-छोटी परेशानियों से घबरा सकते है।
  2. हम अपनी गलतियों की जिम्मेदारी लेने के बजाय बहाने बना सकते है।
  3. भावनात्मक रूप से कमजोर हो सकते है।
  4. हमारी सफलता सीमित और अस्थिर हो सकती है।
खुद पर कार्य करने की लिए इन तीन पहलुओं पर ध्यान देना है;

कमिटमेंट: अगर हम अपनी परेशनियों के बारे में रुक कर सोच नहीं सकते, तो इसकी सभावना अधिक है हम अपने अपने कार्य को देर-सवेर छोड़ने का प्रयास कर सकते है।

व्यक्तिगत जिम्मेदारी लें: अपने ट्रेडिंग रिजल्ट की पूरी ज़िम्मेदारी खुद लें। "मैं ही क्यों?" से "मैं ही क्यों नहीं?" की सोच अपनाएँ। दूसरों या हालात को दोष देने के बजाय अपनी गलतियों का विश्लेषण करें और सुधार करना है।

स्वयं को समय दें: वर्तमान में जिएँ और फोकस बनाए रखें। हंसने और सकारात्मक सोचने की आदत डालें। थैंकफुल रहना सीखें और ध्यान (Meditation) करें। स्वस्थ शरीर के लिए गहरी सांस लेने की प्रैक्टिस करें।

ट्रेडिंग वर्किंग बिज़नेस प्लान

एक ट्रेडिंग बिजनेस प्लान वह दस्तावेज होता है, जो हमारे ट्रेडिंग से जुड़े सभी महत्वपूर्ण पहलुओं को स्पष्ट करता है। इसमें ट्रेडिंग रणनीतियाँ, मनी मैनेजमेंट, रिस्क कंट्रोल, एजुकेशन प्लान, लॉस मैनेजमेंट, पोजीशन साइजिंग और डिजास्टर प्लान जैसी चीजें शामिल होती हैं।

कई नए ट्रेडर्स बिना किसी ठोस योजना के मार्केट में प्रवेश कर लेते हैं और जल्द ही भावनाओं के आधार पर ट्रेड करने लगते हैं। परिणामस्वरूप, वे बिना किसी स्ट्रेटजी के अनिश्चित नुकसान उठाते हैं। अगर ट्रेडिंग को व्यवसाय की तरह नहीं देखा जाए, तो यह केवल एक जुआ बनकर रह जाता है।

ट्रेडिंग बिजनेस प्लान बनाते समय हमें इन चीजों पर ध्यान देना होता है;

  1. अपनी ट्रेडिंग रणनीति और इंडिकेटर्स को स्पष्ट रूप से परिभाषित करें।
  2. यह तय करना कि हर ट्रेड में कितना पैसा निवेश करना है।
  3. पहले से तय करना कि कब नुकसान लेकर ट्रेड से बाहर निकलना है।
  4. अप्रत्याशित बाजार स्थितियों में खुद को कैसे बचाना है।
  5. हर ट्रेड के लिए सही पोजीशन साइज निर्धारित करना, ताकि जोखिम कम से कम हो।

ट्रेडिंग सिस्टम बनाना

ट्रेडिंग सिस्टम एक रणनीति होती है, जो हमें यह तय करने में मदद करती है कि हमें कब एंट्री लेनी है, कब एग्जिट करना है और किस तरह से रिस्क को मैनेज करना है। एक अच्छा ट्रेडिंग सिस्टम बिना इमोशन के, तार्किक आधार पर ट्रेडिंग करने में मदद करता है।

लेखक बताते हैं कि सिर्फ सही एंट्री लेने से सफलता नहीं मिलती। अगर हमारी साइकोलॉजी, एग्जिट स्ट्रेटेजी और पोजिशन साइजिंग सही है, तो हम रैंडम एंट्री लेकर भी मुनाफा कमा सकते हैं।

कई ट्रेडर्स सोचते हैं कि अगर वे सबसे बेहतरीन स्टॉक चुनेंगे, तो वे सफल हो जाएंगे। लेकिन लॉस होने पर वे स्टॉक सिलेक्शन प्रोसेस को दोष देने लगते हैं, जबकि असल में उन्हें एग्जिट प्लान और रिस्क मैनेजमेंट पर ध्यान देने की जरूरत होती है।

एक बेहतर ट्रेडिंग सिस्टम कुछ सुझाव इस प्रकार है;

  1. स्पष्ट एंट्री और एग्जिट नियम तय करें।
  2. स्टॉप लॉस तय करें ताकि अधिक नुकसान न हो।
  3. पोजिशन साइजिंग को सही रखें, ताकि एक ही ट्रेड में बड़ा नुकसान न हो।
  4. अपने ट्रेडिंग सिस्टम को पुराने डेटा पर टेस्ट करें, ताकि उसकी सफलता दर समझ सकें।
  5. लगातार सुधार करते रहें और सिस्टम को अपडेट करते रहें।

पोजीशन साइजिंग स्ट्रेटेजी

साधारण शब्दों में, पोजीशन साइजिंग का मतलब यह तय करना है कि हम किसी ट्रेड में कितने शेयर या कॉन्ट्रैक्ट खरीदें या बेचें। यह पूरी तरह हमारे ट्रेडिंग कैपिटल और रिस्क मैनेजमेंट पर निर्भर करता है।

हर मार्केट (स्टॉक्स, फॉरेक्स, कमोडिटी, क्रिप्टो) के लिए पोजीशन साइजिंग अलग-अलग हो सकती है। उदाहरण के लिए, एक कम वोलाटिलिटी वाले स्टॉक में बड़ी पोजीशन ली जा सकती है, जबकि ज्यादा वोलाटाइल स्टॉक में छोटी पोजीशन लेना सही रहता है।

हर ट्रेड में एक निश्चित प्रतिशत (जैसे 1% या 2%) से ज्यादा रिस्क न लेकर हम अपने कैपिटल को लंबे समय तक बचा सकते हैं।

पोजीशन साइजिंग को मैनेज करने के कुछ तरीके इस प्रकार है;

अपने रिस्क को पहले तय करना: अगर हमारी ट्रेडिंग कैपिटल ₹10,000 है और हम 2% रिस्क लेना चाहते हैं, तो प्रति ट्रेड अधिकतम ₹200 का रिस्क लें।

स्टॉप लॉस के आधार पर शेयर क्वांटिटी निकालें: यदि किसी स्टॉक में हमारा स्टॉप लॉस ₹5 प्रति शेयर है, तो हम 200/5=40 शेयर खरीद सकते हैं। अगर ट्रेड गलत हुआ, तो हमें सिर्फ ₹200 का नुकसान होगा, जो हमारे रिस्क लिमिट के अंदर है।

बड़े ट्रेड से बचें: अगर हमारे पास ₹10,000 कैपिटल है, तो ₹20,000 की पोजीशन लेना गलत होगा। हमेशा अपने कैपिटल और रिस्क के अनुसार ही ट्रेड लें।

मार्केट की स्थिति को समझें: अगर मार्केट ज्यादा वोलाटाइल है, तो छोटी पोजीशन लें। अगर मार्केट कम वोलाटाइल है, तो थोड़ी बड़ी पोजीशन ली जा सकती है।

ट्रेडिंग गलतियों को कम करना

ट्रेडिंग के दौरान हम अक्सर छोटी-छोटी गलतियाँ करते हैं, जिन्हें हम नज़रअंदाज कर देते हैं। ये गलतियाँ देखने में मामूली लग सकती हैं, लेकिन समय के साथ ये बड़े नुकसान में बदल सकती हैं।

ये सामान्य ट्रेडिंग गलतियाँ इस प्रकार है;

  1. इमोशन के आधार पर ट्रेड लेना।
  2. अपनी गलतियों को स्वीकार न करना और दूसरों को दोष देना।
  3. बिना किसी एग्जिट प्लान के ट्रेड में एंट्री लेना।
  4. ओवर-ट्रेडिंग करना और बिना स्ट्रेटेजी के ट्रेड करना।

ट्रेडिंग गलतियों को कम करने के कुछ तरीके इस प्रकार है;

Keep it Simple: ट्रेडिंग को अधिक जटिल बनाने से बचें। मनी मैनेजमेंट, एंट्री-एग्जिट सिस्टम और बिजनेस प्लान को सिंपल और प्रभावी रखें।

गलतियों को ट्रैक करें: हर ट्रेड का रिस्क-टू-रिकॉर्ड जाने और यह देखें कि किन कारणों से लॉस हुआ। एक जर्नल बनाएं जिसमें अपनी ट्रेडिंग गलतियों को नोट करें।

सिस्टम पर फोकस करें: बिना रणनीति के ट्रेड न करें। मार्केट में विभिन्न रणनीतियों को टेस्ट करें और अपने सिस्टम को लगातार सुधारें।

अनुभव साझा करें: नए ट्रेडर्स को गाइड करें और दूसरों के अनुभवों से सीखें। एक सपोर्ट ग्रुप बनाएं जहां ट्रेडिंग गलतियों पर चर्चा हो सके।


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